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"मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"" के अवतरणों में अंतर
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मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल | मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल |
13:48, 27 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल
इक नये अंदाज़ की मेरी ग़ज़ल
एक तन्हाई का आलम, और मैं
पेड़-पौधों ने सुनी मेरी ग़ज़ल
खाद-पानी लफ्ज़ो-मानी का जिला
ख़ूब ही फूली-फली मेरी ग़ज़ल
जब कभी जज़्बात की बारिश हुई
भीगी-भीगी-सी हुई मेरी ग़ज़ल
फूँकती है जान इक-इक लफ्ज़ में
शोख़, चंचल, चुलबुली, मेरी ग़ज़ल
ये भी है मेरे लिए राहत की बात
जाँच में उतरी खरी मेरी ग़ज़ल
आया महरिष, शेर कहने का शऊर
मेहरबाँ मुझ पर हुई मेरी ग़ज़ल