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"महिला ऐसे चलती / ओम धीरज" के अवतरणों में अंतर

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पुरूष पूत है लोहा पक्का  
 
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वह कुम्हार की माटी ,  
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इसीलिए वह सदा साथ में  
 
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यही पाठ पढ़ पाती,  
 
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भाई लालटेन  
 
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बहना ढिवरी की इक बाती ,  
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’फूँक लगे पर बुझ जाये’  
 
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वह इसी सोच में पलती ,  
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वह इसी सोच में पलती,  
 
ठोस बड़ी कन्दील सरीखी  
 
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बूँद-बूँद सी गलती  
 
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प्याले शीशे पत्थर के वे,  
 
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वह माटी का कुल्हड़ ,  
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उसके जूठे होने का  
 
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हर वक्त मनाएँ हुल्लड़  
 
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सदा हुई भयभीत पुरूष से,  
 
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पुरूष ओट वह रखती ,  
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सीता-सी, रावण-पुरूषों के
 
सीता-सी, रावण-पुरूषों के
बीच सदा तृण रखती ।
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बीच सदा तृण रखती।
 
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13:42, 7 मई 2014 के समय का अवतरण

आठ साल के बच्चे के संग
महिला ऐसे चलती,
जैसे साथ सुरक्षा गाड़ी
लप-लप बत्ती जलती

बचपन से ही देख रही वह
यह विचित्र परिपाटी,
पुरूष पूत है लोहा पक्का
वह कुम्हार की माटी,
'बूँद पड़े पर गल जायेगी’
यही सोचकर बढ़ती,
इसीलिए वह सदा साथ में
छाता कोई रखती

बाबुल के आँगन में भी वह
यही पाठ पढ़ पाती,
भाई लालटेन
बहना ढिवरी की इक बाती,
’फूँक लगे पर बुझ जाये’
वह इसी सोच में पलती,
ठोस बड़ी कन्दील सरीखी
बूँद-बूँद सी गलती

प्याले शीशे पत्थर के वे,
वह माटी का कुल्हड़,
उसके जूठे होने का
हर वक्त मनाएँ हुल्लड़
सदा हुई भयभीत पुरूष से,
पुरूष ओट वह रखती,
सीता-सी, रावण-पुरूषों के
बीच सदा तृण रखती।