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"माँ-2 / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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कितना छोटा है माँ
 
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नहीं समा पाता जिसमें
 
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तुम्हार बुढा़पा...
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18:12, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

तुम्हारा आँचल
कितना बडा़ था माँ
समा जाते थे जिसमें
मेरे सारे खेल
सारे सपने
सारी गुस्ताखियाँ...

मेरा दामन
कितना छोटा है माँ
नहीं समा पाता जिसमें
तुम्हार बुढा़पा...