भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माघ हे सखि मेघ लागल / मैथिली लोकगीत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ऋतू ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
माघ हे सखि मेघ लागल, पिया चलल परदेश यो
 
माघ हे सखि मेघ लागल, पिया चलल परदेश यो
अपनो वयस ओतहि बिताओल, हमरा के बारि बयस यो
+
अपनो वयस ओतहि बितओता, हमर कोन अपराध यो -2
फागुन हे सखि आम मजरल, कोइली शब्द घमसान यो
+
फागुन हे सखि आम मजरल, कोइली बाजे घमसान यो
कोइली शब्द सुनि हिया मोर सालय, नयना नीर बहि गेल यो
+
कोइली शब्द सुनि हिय मोर सालय, नयना नीर बहि गेल यो
चैत हे सखि फुलल बेली, भ्रमर लेल निज बास यो
+
 
तेजि मोहन गेल मधुपुर, हमरा सऽ कओने अपराध यो
+
चैत हे सखि पर्व लगईछई, जाय सब सखी गंगा स्नान यो
बैसाख हे सखि उखम ज्वाला, पिया रोपल चम्पा गाछ यो
+
सब सखी पहिरे पियरी पीताम्बर, हमरा के देव दुःख देल यो
ताहि तर हम ठाढ़ भेलौं, बहि गेल शीतल बयार यो
+
बैसाख हे सखि उसम ज्वाला, घाम सं भीजल शरीर यो
 +
रगरि चन्दन अंग लेपितहूँ, जून गृह रहितथि कन्त यो
 
</poem>
 
</poem>

19:35, 4 जुलाई 2020 का अवतरण

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

माघ हे सखि मेघ लागल, पिया चलल परदेश यो
अपनो वयस ओतहि बितओता, हमर कोन अपराध यो -2
फागुन हे सखि आम मजरल, कोइली बाजे घमसान यो
कोइली शब्द सुनि हिय मोर सालय, नयना नीर बहि गेल यो

चैत हे सखि पर्व लगईछई, जाय सब सखी गंगा स्नान यो
सब सखी पहिरे पियरी पीताम्बर, हमरा के देव दुःख देल यो
बैसाख हे सखि उसम ज्वाला, घाम सं भीजल शरीर यो
रगरि चन्दन अंग लेपितहूँ, जून गृह रहितथि कन्त यो