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मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू-बास लिखेंगे / अदम गोंडवी

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मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू-बास लिखेंगे ।
हम अपने इस कालखण्ड का एक नया इतिहास लिखेंगे ।

सदियों से जो रहे उपेक्षित श्रीमन्तों के हरम<ref>अन्तःपुर, जनानख़ाना</ref> सजाकर,
उन दलितों की करुण कहानी मुद्रा<ref>हिन्दी के लेखक मुद्राराक्षस</ref> से रैदास लिखेंगे ।

प्रेमचन्द की रचनाओं को एक सिरे से खारिज़ करके,
ये 'ओशो' के अनुयायी हैं, कामसूत्र पर भाष लिखेंगे ।

एक अलग ही छवि बनती है परम्परा भंजक होने से,
तुलसी इनके लिए विधर्मी, देरिदा<ref>विखण्डनवाद का सिद्धान्त देने वाले पाश्चात्य विद्वान जॉक देरिदा</ref> को ख़ास लिखेंगे ।

इनके कुत्सित सम्बन्धों से पाठक का क्या लेना-देना,
लेकिन ये तो अड़े हैं ज़िद पे अपना भोग-विलास लिखेंगे ।

शब्दार्थ
<references/>