भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानी ब्रह्म बानीं सों पताल जान ठानी चली / रमादेवी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 3 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमादेवी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavitt}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानी ब्रह्म बानीं सों पताल जान ठानी चली,
मुक्ति की निसानी धरा चाहत फटीसी है।
आये भई दंग लोप गंग की तरंग देख,
संभु की जटा की छटा धुर लौं अटीसी है॥

देख के अखंड तप गंगा जी प्रचंड 'रमा',
त्याग के घमंड सम्भु सीस से छटीसी है।
भूतपित्र तारन को नर्क से उबारन को,
पन्नगी पिनाकी पग पूजि पलटीसी है॥