भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कुछ और थे इस दौर में जीने के करीने
हर जाम लहू-रंग था देखो देखा ये सभी ने
क्यूँ शीशा-ए-दिल चूर था पूछा न किसी ने
Mover, Uploader
752
edits