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"मिथक प्‍यार का / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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(इस आखिरी बार उसे छू लेना चाहती है लडकी)
 
 
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बेचैन सी एक लड़की जब झांकती है मेरी आंखों में
 
बेचैन सी एक लड़की जब झांकती है मेरी आंखों में
 
 
वहां पाती है जगत कुएं का
 
वहां पाती है जगत कुएं का
 
 
जिसकी तली में होता है जल
 
जिसकी तली में होता है जल
 
 
जिसमें चक्‍कर काटत हैं मछलियों रंग-बिरंगी
 
जिसमें चक्‍कर काटत हैं मछलियों रंग-बिरंगी
 
  
 
लड़की के हाथों में टुकड़े होते हैं पत्‍थर के
 
लड़की के हाथों में टुकड़े होते हैं पत्‍थर के
 
 
पट-पट-पट
 
पट-पट-पट
 
 
उनसे अठगोटिया खेलती है लड़की
 
उनसे अठगोटिया खेलती है लड़की
 
 
कि गिर पड़ता है एक पत्‍थर जगत से लुडककर पानी में
 
कि गिर पड़ता है एक पत्‍थर जगत से लुडककर पानी में
 
 
टप…अच्‍छी लगती है ध्‍वनि
 
टप…अच्‍छी लगती है ध्‍वनि
 
 
टप-टप-टप वह गिराती जाती है पत्‍थर
 
टप-टप-टप वह गिराती जाती है पत्‍थर
 
 
उसका हाथ खाली हो जाता है
 
उसका हाथ खाली हो जाता है
 
 
तो वह देखती है
 
तो वह देखती है
 
 
लाल फ्राक पहने उसका चेहरा
 
लाल फ्राक पहने उसका चेहरा
 
 
त ल म ला रहा होता है तली में
 
त ल म ला रहा होता है तली में
 
 
कि
 
कि
 
 
वह करती है कू…
 
वह करती है कू…
 
 
प्रतिध्‍वनि लौटती है
 
प्रतिध्‍वनि लौटती है
 
 
कू -कू -कू
 
कू -कू -कू
 
 
लड़की समझती है कि मैंने उसे पुकारा है
 
लड़की समझती है कि मैंने उसे पुकारा है
 
 
और हंस पड़ती है
 
और हंस पड़ती है
 
 
झर-झर-झर
 
झर-झर-झर
 
 
झर-झर-झर लौटती है प्रतिध्‍वनि
 
झर-झर-झर लौटती है प्रतिध्‍वनि
 
 
जैसे बारिश हो रही हो
 
जैसे बारिश हो रही हो
 
 
शर्म से भीगती भाग जाती है लड़की
 
शर्म से भीगती भाग जाती है लड़की
 
 
धम-घम-घम
 
धम-घम-घम
 
  
 
इसी तरह सुबह होती है शाम होती है
 
इसी तरह सुबह होती है शाम होती है
 
 
आती है रात
 
आती है रात
 
 
आकाश उतराने लगता है मेरे भीतर
 
आकाश उतराने लगता है मेरे भीतर
 
 
तारे चिन-चिन करते
 
तारे चिन-चिन करते
 
 
कि कंपकंपी छूटने लगती है
 
कि कंपकंपी छूटने लगती है
 
 
और तरेगन डोलते रहते हैं सारी रात
 
और तरेगन डोलते रहते हैं सारी रात
 
 
सितारे मंढे चंदोवे सा
 
सितारे मंढे चंदोवे सा
 
  
 
फिर आती है सुबह
 
फिर आती है सुबह
 
 
टप-झर-धम-धम-टप-झर-झर-झर
 
टप-झर-धम-धम-टप-झर-झर-झर
 
  
 
कि जगत पर उतरने लगते हैं
 
कि जगत पर उतरने लगते हैं
 
 
निशान पावों के
 
निशान पावों के
 
  
 
इसी तरह बदलती हैं ऋतुएं
 
इसी तरह बदलती हैं ऋतुएं
 
 
आती है बरसात
 
आती है बरसात
 
 
पानी उपर आ जाता है जगत के पास
 
पानी उपर आ जाता है जगत के पास
 
 
थोडा झुककर ही उसे छू लिया करती है लड़की
 
थोडा झुककर ही उसे छू लिया करती है लड़की
 
 
थरथरा उठता है जल
 
थरथरा उठता है जल
 
  
 
फिर आता है जाड़ा
 
फिर आता है जाड़ा
 
 
प्रतिबंधों की मार से कंपाता
 
प्रतिबंधों की मार से कंपाता
 
  
 
और अंत में गर्मी
 
और अंत में गर्मी
 
 
कि लड़की आती है जगत पर एक सुबह
 
कि लड़की आती है जगत पर एक सुबह
 
 
तो जल उतर चुका होता है तली में
 
तो जल उतर चुका होता है तली में
 
  
 
इस आखिरी बार
 
इस आखिरी बार
 
 
उसे छू लेना चाहती है लडकी
 
उसे छू लेना चाहती है लडकी
 
 
कि निचोडती है खुद को
 
कि निचोडती है खुद को
 
 
और टपकते हैं आंसू
 
और टपकते हैं आंसू
 
 
टप-टप
 
टप-टप
 
 
प्रतिध्‍वनि लौटती है टप-टप-टप
 
प्रतिध्‍वनि लौटती है टप-टप-टप
 
 
लड़की को लगता है कि मैं भी रो रहा हूं
 
लड़की को लगता है कि मैं भी रो रहा हूं
 
 
और फफक कर भाग उठती है वह
 
और फफक कर भाग उठती है वह
 
 
भाग चलता है जल तली से।
 
भाग चलता है जल तली से।
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06:51, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

बेचैन सी एक लड़की जब झांकती है मेरी आंखों में
वहां पाती है जगत कुएं का
जिसकी तली में होता है जल
जिसमें चक्‍कर काटत हैं मछलियों रंग-बिरंगी

लड़की के हाथों में टुकड़े होते हैं पत्‍थर के
पट-पट-पट
उनसे अठगोटिया खेलती है लड़की
कि गिर पड़ता है एक पत्‍थर जगत से लुडककर पानी में
टप…अच्‍छी लगती है ध्‍वनि
टप-टप-टप वह गिराती जाती है पत्‍थर
उसका हाथ खाली हो जाता है
तो वह देखती है
लाल फ्राक पहने उसका चेहरा
त ल म ला रहा होता है तली में
कि
वह करती है कू…
प्रतिध्‍वनि लौटती है
कू -कू -कू
लड़की समझती है कि मैंने उसे पुकारा है
और हंस पड़ती है
झर-झर-झर
झर-झर-झर लौटती है प्रतिध्‍वनि
जैसे बारिश हो रही हो
शर्म से भीगती भाग जाती है लड़की
धम-घम-घम

इसी तरह सुबह होती है शाम होती है
आती है रात
आकाश उतराने लगता है मेरे भीतर
तारे चिन-चिन करते
कि कंपकंपी छूटने लगती है
और तरेगन डोलते रहते हैं सारी रात
सितारे मंढे चंदोवे सा

फिर आती है सुबह
टप-झर-धम-धम-टप-झर-झर-झर

कि जगत पर उतरने लगते हैं
निशान पावों के

इसी तरह बदलती हैं ऋतुएं
आती है बरसात
पानी उपर आ जाता है जगत के पास
थोडा झुककर ही उसे छू लिया करती है लड़की
थरथरा उठता है जल

फिर आता है जाड़ा
प्रतिबंधों की मार से कंपाता

और अंत में गर्मी
कि लड़की आती है जगत पर एक सुबह
तो जल उतर चुका होता है तली में

इस आखिरी बार
उसे छू लेना चाहती है लडकी
कि निचोडती है खुद को
और टपकते हैं आंसू
टप-टप
प्रतिध्‍वनि लौटती है टप-टप-टप
लड़की को लगता है कि मैं भी रो रहा हूं
और फफक कर भाग उठती है वह
भाग चलता है जल तली से।