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"मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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क्या श्री राम सुखी रह पाये!
 
क्या श्री राम सुखी रह पाये!
 
सीता को न देख अकुलाये
 
सीता को न देख अकुलाये
चुभा शूल-सा मन में  
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                  चुभा शूल-सा मन में  
 
   
 
   
 
'बोले लक्ष्मण से कातर-स्वर
 
'बोले लक्ष्मण से कातर-स्वर
 
"भाई! क्यों तुम गये छोड़कर!
 
"भाई! क्यों तुम गये छोड़कर!
 
सोचा भी न अकेली स्त्री पर  
 
सोचा भी न अकेली स्त्री पर  
क्या बीतेगी वन में!" '
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                    क्या बीतेगी वन में!'
 
   
 
   
 
पूरी भी न हुई थी गाथा  
 
पूरी भी न हुई थी गाथा  
 
प्रभु ने सिहर झुकाया माथा
 
प्रभु ने सिहर झुकाया माथा
 
'क्यों न मुझे भी यह सूझा था
 
'क्यों न मुझे भी यह सूझा था
उसके निर्वासन में!'
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                      उसके निर्वासन में!'
  
 
मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
 
मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
 
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!
 
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!
 
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04:10, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!

पंचवटी में भी जब आये
क्या श्री राम सुखी रह पाये!
सीता को न देख अकुलाये
                   चुभा शूल-सा मन में
 
'बोले लक्ष्मण से कातर-स्वर
"भाई! क्यों तुम गये छोड़कर!
सोचा भी न अकेली स्त्री पर
                    क्या बीतेगी वन में!'
 
पूरी भी न हुई थी गाथा
प्रभु ने सिहर झुकाया माथा
'क्यों न मुझे भी यह सूझा था
                      उसके निर्वासन में!'

मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!