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मिलो कभी मत, नहीं खबर लो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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मिलो कभी मत, नहीं खबर लो, कभी न दो सुख-दुख-संवाद।
पूर्णरूप से भूलो मन से, मरने पर भी करो न याद॥
मैं पर तुम्हें नहीं भूलूँगी, ताकूँगी न दूसरी ओर।
न्योछावर हो चुका तुम्हीं पर जीवन यह मेरा, चितचोर!
मरण-समय मानस-थलमें रख मस्तक बन्धु! तुम्हारी गोद।
निरख तुम्हें अपलक नेत्रों से मर जान्नँगी मैं अति मोद॥
मरने पर भी सदा रहेगा मेरा तुमसे प्रिय सबन्ध।
टूट नहीं सकता वह, जहाँ न होती काम-कलुष की गन्ध॥