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Kavita Kosh से
हथेली पर काँटों की फूल खिल जाया करते हैं ॥ <br>
बस्ती एक बसाई थी कल<br>
वहाँ पर ढेरों फूल खिलाए।<br>
आज पहुँचकर सन्नाटे में<br>
आशाओं की पौध लगाएँ।। <br>
नहीं हम रहे रोशनी चुराने वाले<br>
हम अँधेरों में दीपक जलाने वाले।<br>
यही सूरज से सीखा, चांद से जाना<br>
सदा चमकते उजाला लुटाने वाले।। <br>
तूफानों में दीपक जलाते चलें<br>
हर मुश्किल में हम गीत गाते चलें।<br>
चलना जिसे साथ वह खुशी से चले<br>
हर दुखी को गले से लगाते चलें।।