भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}'''4-मुक्तक'''<br>{{KKRachna'''|रचनाकार=रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’'काम्बोज 'हिमांशु' <br><br>}}
हथेली पर काँटों की फूल खिल जाया करते हैं ॥ <br>
 
 
 
बस्ती एक बसाई थी कल<br>
 
वहाँ पर ढेरों फूल खिलाए।<br>
 
आज पहुँचकर सन्नाटे में<br>
 
आशाओं की पौध लगाएँ।। <br>
 
 
 
नहीं हम रहे रोशनी चुराने वाले<br>
 
हम अँधेरों में दीपक जलाने वाले।<br>
 
यही सूरज से सीखा, चांद से जाना<br>
 
सदा चमकते उजाला लुटाने वाले।। <br>
 
 
 
तूफानों में दीपक जलाते चलें<br>
 
हर मुश्किल में हम गीत गाते चलें।<br>
 
चलना जिसे साथ वह खुशी से चले<br>
 
हर दुखी को गले से लगाते चलें।।