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मुक्त करो / निज़ार क़ब्बानी / सिद्धेश्वर सिंह

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जूही के कण्ठहार की तरह खालिस
आड़ू के छिलके की तरह कमनीय
तुम धँस गईं
एक बरछी की तरह
मेरे जीवन के भीतर।

मुक्त करो
मेरी पुस्तिकाओं के पन्नों को
बिछावन की चादरों को।

मुक्त करो
मेरे कॉफ़ी के प्यालों को
चीनी के चम्मचों को।

मुक्त करो
मेरी कमीज़ों के बटनों को
रूमालों की धारियों को।

मुक्त करो
मेरी तमाम मामूली चीज़ों को
ताकि मैं जा सकूँ अपने काम पर।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह