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"मुझे भरोसा है / तुषार धवल" के अवतरणों में अंतर

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'''मुझे भरोसा है'''
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मै प्रक्षिप्त शब्द
 
मृत्यु के नाचते पैरों के बीच
 
अंत का मुकम्मल अंत
 
कलम से पूछता हूँ
 
  
एक पन्ना कहीं उड़ कर  
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पूरी दुनिया छाप लाता है  
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मृत्यु के नाचते पैरों के बीच <br/>
और उसमे दुनिया भर की कब्रें होती हैं  
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कलम से पूछता हूँ <br/>
मुझे नहीं चाहिए ये कब्रें ये नक्शे  
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क्योंकि अभी भी दुनिया को हाथों की ज़रूरत है  
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एक पन्ना कहीं उड़ कर <br/>
पहचान को ज़बान की ज़रूरत है  
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और उसमे दुनिया भर की कब्रें होती हैं <br/>
हवास के चेहेरे पर  
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फलसफों के मुखौटे  
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मुझे नहीं चाहिए ये कब्रें ये नक्शे <br/>
ध्वस्त मुंडेरों पर नाचने वाले अपने ही गिद्धों से परेशान होते हैं  
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क्योंकि अभी भी दुनिया को हाथों की ज़रूरत है <br/>
और  
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पहचान को ज़बान की ज़रूरत है <br/>
चुप कर दिए गए लोग  
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बस देखते रहते हैं  
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हवास के चेहेरे पर <br/>
उनके सन्नाटों में कोई चीखता है  
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पुकारता है  
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ध्वस्त मुंडेरों पर नाचने वाले अपने ही गिद्धों से परेशान होते हैं <br/>
उनकी व्यस्तताओं के बीच  
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चुप कर दिए गए लोग <br/>
मुझे भरोसा है उस बस्ती का  
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बस देखते रहते हैं <br/>
जहाँ लोग बोलना भूल गए हैं .
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उनके सन्नाटों में कोई चीखता है <br/>
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पुकारता है <br/>
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उनकी व्यस्तताओं के बीच <br/>
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मुझे भरोसा है उस बस्ती का <br/>
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जहाँ लोग बोलना भूल गए हैं .<br/>

22:13, 20 अगस्त 2008 के समय का अवतरण


मै प्रक्षिप्त शब्द
मृत्यु के नाचते पैरों के बीच
अंत का मुकम्मल अंत
कलम से पूछता हूँ

एक पन्ना कहीं उड़ कर
पूरी दुनिया छाप लाता है
और उसमे दुनिया भर की कब्रें होती हैं

मुझे नहीं चाहिए ये कब्रें ये नक्शे
क्योंकि अभी भी दुनिया को हाथों की ज़रूरत है
पहचान को ज़बान की ज़रूरत है

हवास के चेहेरे पर
फलसफों के मुखौटे
ध्वस्त मुंडेरों पर नाचने वाले अपने ही गिद्धों से परेशान होते हैं
और
चुप कर दिए गए लोग
बस देखते रहते हैं
उनके सन्नाटों में कोई चीखता है
पुकारता है
उनकी व्यस्तताओं के बीच

मुझे भरोसा है उस बस्ती का
जहाँ लोग बोलना भूल गए हैं .