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"मुनादी / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर

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खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का
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हुकुम शहर कोतवाल का...
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हर खासो-आम को आगह किया जाता है
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कि खबरदार रहें
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कुंडी चढा़कर बन्द कर लें
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गिरा लें खिड़कियों के परदे
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क्योंकि
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एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में
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सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है !
  
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शहर का हर बशर वाकिफ है
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कि पच्चीस साल से मुजिर है यह
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कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए
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और भूख से पेट दबाये ढाँचे को
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और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को
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बचाने की बेअदबी की जाय !
  
खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का<br>
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जीप अगर बाश्शा की है तो
हुकुम शहर कोतवाल का...<br>
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उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?
हर खासो-आम को आगह किया जाता है<br>
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आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !
कि खबरदार रहें<br>
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बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले
और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से<br>
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अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने
कुंडी चढा़कर बन्द कर लें<br>
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एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ
गिरा लें खिड़कियों के परदे<br>
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भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें<br>
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और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर
क्योंकि<br>
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तुम पर छाँह किये रहते हैं
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में<br>
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और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है !<br><br>
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मोटर वालों की ओर लपकती हैं
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कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;
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तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर
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भला और क्या हासिल होने वाला है ?
  
शहर का हर बशर वाकिफ है<br>
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आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से
कि पच्चीस साल से मुजिर है यह<br>
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जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप
कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए<br>
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बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए
कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए<br>
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रात-रात जागते हैं;
कि मार खाते भले आदमी को<br>
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और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए
और असमत लुटती औरत को<br>
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मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक
और भूख से पेट दबाये ढाँचे को<br>
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छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं...
और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को<br>
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तोड़ दिये जाएँगे पैर
बचाने की बेअदबी की जाय !<br><br>
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और फोड़ दी जाएँगी आँखें
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अगर तुमने अपने पाँव चल कर
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महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर
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अन्दर झाँकने की कोशिश की !
  
जीप अगर बाश्शा की है तो<br>
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क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी
उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?<br>
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जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे
आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !<br>
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काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?
बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले<br>
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वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ
अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने<br>
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गहराइयों में गाड़ दी है
एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ<br>
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कि आने वाली नस्लें उसे देखें और
भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं<br>
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हमारी जवाँमर्दी की दाद दें
और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर<br>
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तुम पर छाँह किये रहते हैं<br>
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और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी<br>
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मोटर वालों की ओर लपकती हैं<br>
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कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;<br>
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तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर<br>
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भला और क्या हासिल होने वाला है ?<br><br>
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आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से<br>
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अब पूछो कहाँ है वह सच जो
जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप<br>
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इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?
बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए<br>
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हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं
रात-रात जागते हैं;<br>
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और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें
और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए<br>
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ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में
मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक<br>
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इस बुड्ढे की बकवास दब जाए !
छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं...<br>
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तोड़ दिये जाएँगे पैर<br>
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और फोड़ दी जाएँगी आँखें<br>
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अगर तुमने अपने पाँव चल कर<br>
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महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर<br>
+
अन्दर झाँकने की कोशिश की !<br><br>
+
  
क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी<br>
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नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते
जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे<br>
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फेंक दी है खड़िया और स्लेट
काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?<br>
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इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह
वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ<br>
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फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं
गहराइयों में गाड़ दी है<br>
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और जिसका बच्चा परसों मारा गया
कि आने वाली नस्लें उसे देखें और<br>
+
वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई
हमारी जवाँमर्दी की दाद दें<br><br>
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सड़क पर निकल आयी है।
  
अब पूछो कहाँ है वह सच जो<br>
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ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है
इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?<br>
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पर जहाँ हो वहीं रहो
हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं<br>
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यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि
और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें<br>
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तुम फासले तय करो और
ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में<br>
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मंजिल तक पहुँचो
इस बुड्ढे की बकवास दब जाए !<br><br>
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नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते<br>
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इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे
फेंक दी है खड़िया और स्लेट<br>
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नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी
इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह<br>
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बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी
फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं<br>
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ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा
और जिसका बच्चा परसों मारा गया<br>
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सब अपनी-अपनी जगह ठप !
वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई<br>
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क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है
सड़क पर निकल आयी है।<br><br>
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और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है
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वहीं ठप कर दिया जाए !
  
ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है<br>
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बेताब मत हो
पर जहाँ हो वहीं रहो<br>
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तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है
यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि<br>
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बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से
तुम फासले तय करो और<br>
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तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए
मंजिल तक पहुँचो<br><br>
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बाश्शा के खास हुक्म से
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उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा
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दर्शन करो !
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वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी
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बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी
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ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा
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नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा
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और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा
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लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में
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और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो
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ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से
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बहा, वह पुँछ जाए !
  
इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे<br>
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बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !
नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी<br>
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बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी<br>
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ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा<br>
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सब अपनी-अपनी जगह ठप !<br>
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क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है<br>
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और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है<br>
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वहीं ठप कर दिया जाए !<br><br>
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बेताब मत हो<br>
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[तानाशाही का असली रूप सामने आते देर नहीं लगी। नवम्बर की शुरूआत में ही हुआ वह भयानक हादसा। जे.पी.ने पटना में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी। हर उपाय पर भी लाखों लोग सरकारी शिकंजा तोड़ कर आये। उन निहत्थों पर निर्मम लाठी-चार्ज का आदेश दिया गया। अखबारों में धक्का खा कर नीचे गिरे हुए बूढ़े जे.पी.उन पर तनी पुलिस की लाठी, बेहोश जे.पी.और फिर घायल सिर पर तौलिया डाले लड़खड़ा कर चलते हुए जे.पी.। दो-तीन दिन भयंकर बेचैनी रही, बेहद गुस्सा और दुख...9 नवम्बर रात 10 बजे यह कविता अनायास फूट पड़ी]
तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है<br>
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बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से<br>
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तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए<br>
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बाश्शा के खास हुक्म से<br>
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उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा<br>
+
दर्शन करो !<br>
+
वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी<br>
+
बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी<br>
+
ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा<br>
+
नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा<br>
+
और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा<br>
+
लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में<br>
+
और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो<br>
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ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से<br>
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बहा, वह पुँछ जाए !<br><br>
+
 
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बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !<br><br>
+
 
+
[तानाशाही का असली रूप सामने आते देर नहीं लगी। नवम्बर की शुरूआत में ही हुआ वह भयानक हादसा। जे.पी.ने पटना में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी। हर उपाय पर भी लाखों लोग सरकारी शिकंजा तोड़ कर आये। उन निहत्थों पर निर्मम लाठी-चार्ज का आदेश दिया गया। अखबारों में धक्का खा कर नीचे गिरे हुए बूढ़े जे.पी.उन पर तनी पुलिस की लाठी, बेहोश जे.पी.और फिर घायल सिर पर तौलिया डाले लड़खड़ा कर चलते हुए जे.पी.।
+
दो-तीन दिन भयंकर बेचैनी रही, बेहद गुस्सा और दुख...9 नवम्बर रात 10 बजे यह कविता अनायास फूट पड़ी]
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11:54, 21 जुलाई 2020 का अवतरण

खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का...
हर खासो-आम को आगह किया जाता है
कि खबरदार रहें
और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से
कुंडी चढा़कर बन्द कर लें
गिरा लें खिड़कियों के परदे
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें
क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है !

शहर का हर बशर वाकिफ है
कि पच्चीस साल से मुजिर है यह
कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए
कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए
कि मार खाते भले आदमी को
और असमत लुटती औरत को
और भूख से पेट दबाये ढाँचे को
और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को
बचाने की बेअदबी की जाय !

जीप अगर बाश्शा की है तो
उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?
आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !
बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले
अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने
एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ
भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं
और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर
तुम पर छाँह किये रहते हैं
और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी
मोटर वालों की ओर लपकती हैं
कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;
तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर
भला और क्या हासिल होने वाला है ?

आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से
जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप
बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए
रात-रात जागते हैं;
और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए
मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक
छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं...
तोड़ दिये जाएँगे पैर
और फोड़ दी जाएँगी आँखें
अगर तुमने अपने पाँव चल कर
महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर
अन्दर झाँकने की कोशिश की !

क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी
जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे
काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?
वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ
गहराइयों में गाड़ दी है
कि आने वाली नस्लें उसे देखें और
हमारी जवाँमर्दी की दाद दें

अब पूछो कहाँ है वह सच जो
इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?
हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं
और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें
ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में
इस बुड्ढे की बकवास दब जाए !

नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते
फेंक दी है खड़िया और स्लेट
इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह
फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं
और जिसका बच्चा परसों मारा गया
वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई
सड़क पर निकल आयी है।

ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है
पर जहाँ हो वहीं रहो
यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि
तुम फासले तय करो और
मंजिल तक पहुँचो

इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे
नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी
बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी
ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा
सब अपनी-अपनी जगह ठप !
क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है
और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है
वहीं ठप कर दिया जाए !

बेताब मत हो
तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है
बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से
तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए
बाश्शा के खास हुक्म से
उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा
दर्शन करो !
वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी
बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी
ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा
नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा
और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा
लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में
और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो
ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से
बहा, वह पुँछ जाए !

बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !

[तानाशाही का असली रूप सामने आते देर नहीं लगी। नवम्बर की शुरूआत में ही हुआ वह भयानक हादसा। जे.पी.ने पटना में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी। हर उपाय पर भी लाखों लोग सरकारी शिकंजा तोड़ कर आये। उन निहत्थों पर निर्मम लाठी-चार्ज का आदेश दिया गया। अखबारों में धक्का खा कर नीचे गिरे हुए बूढ़े जे.पी.उन पर तनी पुलिस की लाठी, बेहोश जे.पी.और फिर घायल सिर पर तौलिया डाले लड़खड़ा कर चलते हुए जे.पी.। दो-तीन दिन भयंकर बेचैनी रही, बेहद गुस्सा और दुख...9 नवम्बर रात 10 बजे यह कविता अनायास फूट पड़ी]