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मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़ / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी

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मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
करे आश्ना आश्ना का लिहाज़

दम-ए-सजदा सर सख़्त था बे-अदब
किया कुछ न उस नक़्श-ए-पा का लिहाज़

न महरूम रख मुझ को हुस्न-ए-कुबू़ल
रहे कुछ तो दस्त-ए-दुआ का लिहाज़

वो हैं पास अब बस कर ऐ दर्द-ए-दिल
करे कुछ मरज़ भी दवा का लिहाज़

मिलाई न ‘वहशत’ कभी उस से आँख
मुझे था जो उस की हया का लिहाज़