भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेघ श्वेत-श्याम कह रहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 21 जनवरी 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेघ श्वेत-श्याम कह रहे
आसमाँ अधेड़ हो गया

कोशिशें हजार कीं मगर
रेत पर बरस नहीं सका
जब चली जिधर चली हवा
मेघ साथ ले गई सदा

बारहा यही हुआ मगर
इन्द्र ने कभी न की दया

सागरों का दोष कुछ नहीं
वायु है ग़ुलाम सूर्य की
स्वप्न ही रही समानता
उम्र बीतती चली गई

एक ही बचा है रास्ता
सूर्य खोज लाइये नया