भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरी अक्ल-ओ-होश की / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जॉन एलिया }}{{KKVID|v=ASYMjYCt6Fg}} Category:ग़ज़ल <poem> मेरी अक्ल-ओ-ह…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= जॉन एलिया | |रचनाकार= जॉन एलिया | ||
− | }}{{KKVID|v= | + | }} |
− | + | {{KKVID|v=hkZxfmP2QNw}} | |
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | मेरी अक्ल-ओ-होश की सब | + | मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें |
− | तुमने सांचे में ढाल दी | + | तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी |
− | कर लिया था मैंने | + | कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क |
− | तुमने | + | तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी |
− | + | यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के पास | |
जाने किस-किस के लिए पैगाम है | जाने किस-किस के लिए पैगाम है | ||
− | जो लिखे जाते औरो के नाम | + | जो लिखे जाते थे औरो के नाम |
− | मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम | + | मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम हैं |
− | ये तेरे खत तेरी खुशबू | + | ये तेरे खत, तेरी खुशबू, ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल, |
− | ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल | + | मताऐ-जाँ है तेरे कौल-ओ-कसम की तरह |
− | + | ||
− | कसम की तरह | + | |
− | + | गुजश्ता सालों मैनें इन्हे गिन के रखा है | |
− | + | किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह | |
− | किसी गरीब की जोड़ी हुई | + | |
− | रकम की तरह | + | |
− | है मुहब्ब्त हयात की | + | है मुहब्ब्त हयात की लज्जत |
− | वरना कुछ | + | वरना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं |
− | क्या इज़ाज़त है एक बात | + | क्या इज़ाज़त है एक बात कहूँ |
मगर खैर कोई बात नहीं | मगर खैर कोई बात नहीं | ||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
12:08, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें
तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी
कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क
तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी
यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते थे औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम हैं
ये तेरे खत, तेरी खुशबू, ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल,
मताऐ-जाँ है तेरे कौल-ओ-कसम की तरह
गुजश्ता सालों मैनें इन्हे गिन के रखा है
किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह
है मुहब्ब्त हयात की लज्जत
वरना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इज़ाज़त है एक बात कहूँ
मगर खैर कोई बात नहीं