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"मेरी ज़बान में जो इतनी तल्ख़ियाँ होंगी / राम गोपाल भारतीय" के अवतरणों में अंतर

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23:33, 11 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

मेरी ज़बान में जो इतनी तल्खियाँ होंगी
ये आज की नहीं सदियों की ग़लतियाँ होंगी

अगर ये मुल्क़ कभी फिर से टूट कर बिखरा
तो ज़िम्मेदार हमारी ये जातियाँ होंगी

फ़ज़ा में घोल दिया ज़हर तो सोचो कैसे
हवा में तितलियाँ पानी में मछलियाँ होंगी

हमारी आँख का जल भाप बन गया शायद
बरस रही जो, उस जल की बदलियाँ होंगी

ख़ुदा का शुक्रिया करना जनम पे इनके भी
सहारा तेरे बुढ़ापे का बेटियाँ होंगी