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"मेरे आगे हार गई थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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रो-रोकर जो दिन कटने थे | रो-रोकर जो दिन कटने थे | ||
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मेरे आगे हार गई थी | मेरे आगे हार गई थी | ||
− | जीवन की हर इक | + | जीवन की हर इक मजबूरी। |
गिरकर उठकर पूरी की थीं, | गिरकर उठकर पूरी की थीं, | ||
धरती से अम्बर की दूरी। | धरती से अम्बर की दूरी। | ||
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20:46, 12 अगस्त 2022 के समय का अवतरण
घिरी उदासी जब जीवन में
तब मैंने त्योहार मनाया ।
रोते रहे लोग जब जीभर
आँसू पीकर मैं मुस्काया।
रो-रोकर जो दिन कटने थे
मैंने वे सब हँसकर टाले।
मुस्कानों में दबकर फूटे,
पड़े पगों में जो-जो छाले।
मेरे आगे हार गई थी
जीवन की हर इक मजबूरी।
गिरकर उठकर पूरी की थीं,
धरती से अम्बर की दूरी।