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मेरे गीतों को भी / रामगोपाल 'रुद्र'

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मेरे गीतों को भी प्यार मिलेगा क्या!

कलियाँ हो जाएँगी बासी,
जब तक आएगी पुनवाँसी!
पतझर के काँटों में फूल खिलेगा क्या!

काँटे जो लगते आए हैं,
लाल-गुलाबी दल लाए हैं!
इनसे पत्थर का भी मर्म छिलेगा क्या!

सूई भी है, डोरा भी है
शशि है और चकोरा भी है!
टाँके पाकर मेरा घाव सिलेगा क्या!