भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरे गीत तुम्हारे / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
मेरे गीत तुम्हारे !
 
मेरे गीत तुम्हारे !
 
ये अभाव के गान,   
 
ये अभाव के गान,   
किसी मानस की आकुल तान ,
+
किसी मानस की आकुल तान,
व्यथा की क्षण-क्षण की अनुभूति ,
+
व्यथा की क्षण-क्षण की अनुभूति,
जहाँ पर आ कर बँधती!
+
जहाँ पर आ कर बँधती !
बात एक ही मेरी चाहे तेरी ,
+
बात एक ही मेरी चाहे तेरी,
जो पग-पग पर हारे!  
+
जो पग-पग पर हारे !  
मेरे गीत तुम्हारे!
+
मेरे गीत तुम्हारे !
*
+
 
 
स्वप्निल पलकें खोल चले  
 
स्वप्निल पलकें खोल चले  
 
जग के रूखे आँगन में,
 
जग के रूखे आँगन में,
 
वे जीवन के फूल जिन्हों ने
 
वे जीवन के फूल जिन्हों ने
मधु के दिवस न देखे
+
मधु के दिवस न देखे
 
बसने को पतझार चला  
 
बसने को पतझार चला  
 
जिन साँसोँ के कानन मे!
 
जिन साँसोँ के कानन मे!
वे अटके भटके से  
+
वे अटके भटके से,
,बेबस जीवन के मारे,
+
बेबस जीवन के मारे,
मेरे गीत तुम्हारे!
+
मेरे गीत तुम्हारे !
*
+
 
 
अधरों की मुस्कान,
 
अधरों की मुस्कान,
 
हृदय का क्रन्दन जहाँ मिलेँगे,
 
हृदय का क्रन्दन जहाँ मिलेँगे,
करुणा-सिंचित कथा –कहानी,
+
करुणा-सिंचित कथा–कहानी,
 
भले न मुख से फूटे,
 
भले न मुख से फूटे,
 
उस माटी मे गन्ध-विकल  
 
उस माटी मे गन्ध-विकल  
गीतोँ के फूल खिलेँगे!
+
गीतोँ के फूल खिलेँगे !
 
अश्रु-हास सुख-दुखमय जीवन  
 
अश्रु-हास सुख-दुखमय जीवन  
चलता साथ तुम्हारे!
+
चलता साथ तुम्हारे !
 
मेरे गीत तुम्हारे !
 
मेरे गीत तुम्हारे !
*
+
 
 
मेरे स्वर ही मेरा परिचय,
 
मेरे स्वर ही मेरा परिचय,
 
इतना-सा ही नाता,
 
इतना-सा ही नाता,
 
जगती की क्षणमयता और  
 
जगती की क्षणमयता और  
 
समय की लहरोँ मे भी  
 
समय की लहरोँ मे भी  
एक यही सँबँध
+
एक यही संबंध
जोड़ता मन से मन का नाता!
+
जोड़ता मन से मन का नाता !
 
हार गई जो अपनी बाजी  
 
हार गई जो अपनी बाजी  
 
लिखती नाम तुम्हारे  
 
लिखती नाम तुम्हारे  
 
मेरे गीत तुम्हारे!
 
मेरे गीत तुम्हारे!
 
 
</poem>
 
</poem>

20:46, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

मेरे गीत तुम्हारे !
ये अभाव के गान,
किसी मानस की आकुल तान,
व्यथा की क्षण-क्षण की अनुभूति,
जहाँ पर आ कर बँधती !
बात एक ही मेरी चाहे तेरी,
जो पग-पग पर हारे !
मेरे गीत तुम्हारे !

स्वप्निल पलकें खोल चले
जग के रूखे आँगन में,
वे जीवन के फूल जिन्हों ने
मधु के दिवस न देखे
बसने को पतझार चला
जिन साँसोँ के कानन मे!
वे अटके भटके से,
बेबस जीवन के मारे,
मेरे गीत तुम्हारे !

अधरों की मुस्कान,
हृदय का क्रन्दन जहाँ मिलेँगे,
करुणा-सिंचित कथा–कहानी,
भले न मुख से फूटे,
उस माटी मे गन्ध-विकल
गीतोँ के फूल खिलेँगे !
अश्रु-हास सुख-दुखमय जीवन
चलता साथ तुम्हारे !
मेरे गीत तुम्हारे !

मेरे स्वर ही मेरा परिचय,
इतना-सा ही नाता,
जगती की क्षणमयता और
समय की लहरोँ मे भी
एक यही संबंध
जोड़ता मन से मन का नाता !
हार गई जो अपनी बाजी
लिखती नाम तुम्हारे
मेरे गीत तुम्हारे!