भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे दिल को कभी इक पल न भूले से क़रार आये / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:58, 28 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव }} {{KKCatGhazal}} <poem> मेरे दिल को क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे दिल को कभी इक पल न भूले से क़रार आये
सितम इतने करो मुझ पर के मेरा दम निकल जाये

ज़बां पर इस लिए पहरा लबों पर इस लिए ताले
जो सच्ची बात है ऐसा न हो मुंह से निकल जाए

मैं तुम से बाख़बर और तुम रहे हो बेख़बर मुझ से
मेरी क़िस्मत में ही कब हैं तुम्हारे प्यार के साये

बसा है जब से इक इन्सां का चेहरा मेरी आँखों में
वह मुझ से दूर हो फिर भी मुझे हर पल नज़र आये

मेरा मायूस दिल यूं तो "सिया" ख़ामोश रहता है
धड़कता है मगर उस पल किसी की याद जब आये