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"मेरे संग-दिल में रहा चाहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है। | वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है। | ||
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बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने, | बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने, | ||
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न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती, | न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती, | ||
मुई इश्क़ में भी नफ़ा चाहती है। | मुई इश्क़ में भी नफ़ा चाहती है। | ||
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10:11, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
मेरे संग-दिल में रहा चाहती है।
वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है।
मैं सच ही कहूँ वो सदा चाहती है।
क्या शौहर नहीं आइना चाहती है?
उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ,
नज़र उम्र भर की सज़ा चाहती है।
बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने,
चराग़ों को जब-जब हवा चाहती है।
न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती,
मुई इश्क़ में भी नफ़ा चाहती है।