भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं ख़ुद मैं उलझा रहता हूँ इतना / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:35, 26 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatTriveni}} <poem> मैं ख़ुद मैं …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं ख़ुद मैं उलझा रहता हूँ इतना
गिर न जाऊँ कहीं चाँद के दरीचे से

अभी वक्त ने मुझको ओढ़ रखा है