भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं सदके तेरे घुंघरुओं की सदा के / मनु भारद्वाज

Kavita Kosh से
Manubhardwaj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:41, 2 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनु भारद्वाज |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}} <Poem> म...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं सदके तेरे घुंघरुओं की सदा के
मुझे रख दिया है दीवाना बना के

नज़र से गिराया , नज़र में बसाके
मिले हैं सिले मुझको ऐसे वफ़ा के

मेरे हाल पर मुस्कुरा लीजियेगा
बहुत रोयेंगे इक दफा मुस्कुराके

अजल तू भी एहसान कर दे ख़ुदारा
बहुत हो चुके हमपे एहसाँ ख़ुदा के

वफ़ा है मुहब्बतं, मुहब्बतं ख़ुदा है
क़दम चूम लीजेगा अहले-वफ़ा के

ये शायद ग़ज़ल है 'मनु' आप ही की
सुकूँ मिल गया है ग़ज़ल गुनगुनाके