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'''इस कविता में कवि ने अँग्रेज़ों की जी-हुज़ूरी करने वाले अँग्रज़ी-भक्त-भारतीयों पर व्यंग्य कसा है'''
मेड इन जापान , खिलौनों से ,सस्ते हैं लार्ड मैकाले के ये नये खिलौने , इन को लो,पैसे के सौ-सौ, दो-दो सौ ।। अँग्रेज़ी ख़ूब बोलते ये, सिगरेट भी अच्छी पीते हैं ।हो सकते हैं सौ से दो सौ,ये नये खिलौने मैकाले के ।।
इन को ले लो पैसे के सौ-सौ दो-दो सौ ये सदा रहेंगे बन सेवक,अँग्रेज़ी ख़ूब बोलते थे हर रोज़ करें झुककर सलाम ।सिगरेट भी अच्छी पीते थे हो सकते हैं दो से दो-दो सौकहीं नहीं भी दुनिया में,ये नये खिलौने इनको ले लो मिलते इतने क़ाबिल ग़ुलाम
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तब तक यह घटने के बजाय
हो जायेंगे करोडों-लाखों  
ये सस्ते हैं इन्हें ले लो
पैसे के सौ-सौ , दो-दो सौ ।
</poem>
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