भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैदान में / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 20 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=खुली आँखें खुले डैने / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैदान में
अकुंठित खड़ा
नीम का
निर्भ्रांत गोलवा पेड़
वनस्पतीय बोध से
चहचहाता है
पत्तियाँ लहराता है
झूम-झूम जाने को
गाने को बुलाता है
जीने की लालसा जगाता
और बलि बलि जाता है।

रचनाकाल: २२-०९-१९९१