भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोर पखा ‘मतिराम’ किरीट / मतिराम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोर पखा ‘मतिराम’ किरीट मैं कंठ बनी बनमाल सुहाई .

मोहन की मुसकानि मनोहर कुंडल डोलनि मैं छबि आई .

लोचन लोल बिसाल बिलोकनि को न विलोकि भयो बस माई.

वा मुख की मधुराई कहा कहौं मीठी लगै अँखियान लुनाई .