भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"म्हनैं ठाह है : पांच / रमेश भोजक ‘समीर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=रमेश भोजक ‘समीर’
 
|रचनाकार=रमेश भोजक ‘समीर’
|संग्रह=
+
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
 
}}
 
}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}

20:34, 15 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

म्हनैं ठाह है
भीड़ होवै-
गूंगी-बोळी
अर
बावळी!
 
सावळ
कोनी बोलै
कोनी सुणै
अर समझै तो दर नीं!
छव
म्हनैं ठाह है
सबदां रो मलम
आवै कोनी कोई काम
उण जगां
जठै हरिया होवै घाव
अर मुद्दो होवै गरम।