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यहाँ तो प्यास-भर पानी भी अब सस्ता नहीं आता / हरेराम समीप
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यहाँ तो प्यास-भर पानी भी अब सस्ता नहीं आता
मगर अख़बार में इस बात का चर्चा नहीं आता
तमाचा मार लो‚ बटुआ छुड़ालो‚कुछ भी कर डालो
ये दुनियादार शहरी हैं‚ इन्हें गुस्सा नहीं आता
मनोबल गिर चुका जिसका‚बगावत क्या करेगा वह
लड़ेगा वो भला कैसे‚ जिसे मरना नहीं आता
सुलगते लफ़्ज़ हाथों में उठाए फिर रहा हूँ मैं
मुझे मालूम है‚ इस राह में दरिया नहीं आता
हमारी बात ज़ालिम की समझ में आए‚ तो कैसे
कहीं ये तो नहीं है‚ कि हमें कहना नहीं आता
बड़े से भी बड़े पर्वत का सीना चीरता है ख़ुद
किसी के पाँव से चलकर कोई दरिया नहीं आता