भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह कैसी दीवाली है? / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इतना शोर-शराबा भाई
यह कैसी दीवाली है,
लगता जैसे आफत आई
यह कैसी दीवाली है!
बजे पटाखे धायँ-धायँ-धाँ
या गोले हैं तोप के,
काँप रहीं घर की दीवारें
यह कैसी दीवाली है!
ठायँ-ठायँ-ठाँ, ठायँ-ठायँ-ठुस
जेसे दो फौजें लड़ती हैं,
ऐसे युद्ध ठना है भाई-
यह कैसी दीवाली है!
आसमान सब धुआँ-धुआँ-सा
धरती पर गंधक के भभके,
कानों के परदे फटते हैं-
यह कैसी दीवाली है!
पल भर चैन नहीं है भाई
नहीं कहीं अब दिल की बातें,
चारों ओर मची आँधी है,
यह कैसी दीवाली है!
नहीं अँधेरा धरती पर हो
काली रात नहीं रह पाए,
अगर चाहते तुम, तो सोचो-
यह कैसी दीवाली है!