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"यह ज़िन्दगी तो कट गयी काँटों की डाल में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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साज़ों को ज़िन्दगी के बिखरना नहीं था यों | साज़ों को ज़िन्दगी के बिखरना नहीं था यों | ||
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आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार | आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार |
02:26, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
यह ज़िन्दगी तो कट गयी काँटों की डाल में
रखते हो अब गुलाब को सोने के थाल में
कुछ तो है बेबसी कि न आती है मौत भी
मछली तड़प रही है मछेरे के जाल में
साज़ों को ज़िन्दगी के बिखरना नहीं था यों
कुछ तो हुई थी भूल किसीकी सँभाल में
आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार
रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में
बँधकर रही न डाल से ख़ुशबू गुलाब की
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में