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शाखों
सरक रहे हैं
पौरुषपूर्ण तनों के कंधों से
पढ़ी जा सकती हैं, अक्षरों-सी
ये फ़ागुन फागुन के चढ़ते हुए दिन हैं
बौराए आम के सिर पर
उग रही है कलँगी
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