भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"युग दर्पण / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |अनुवादक= |संग्रह=तुम्हे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:58, 13 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

बन्धु प्रशंसा की है मैंने सदा गधे की
कितना सहनशील होता है, लाज नधे की
ढोता है, हिलमिलकर साथ-साथ चरता है
कितना सामाजिक है, यह है चाल सधे की

सिंह जंगली होता है, उससे डरता है
सारा जग, दुनिया का कौन भला करता है ?
फिर इसका क्यों गुण गाएँं ? क्यों बड़ा बताएँ ?
पोस मानता नहीं अकड़ लेकर मरता है

और गधा यह मारें पीटें और सताएँ
जितना जी चाहे, मनचाही घात घताएँ
क्या जाने विरोध, कहते हैं इसे शिष्टता
जैसा जी चाहे जीवन के सूत कताएँ

मानव की सन्तति में केवल बची धृष्टता
उत्कृष्टता गई, आई है अब निकृष्टता ।