भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युद्ध / विनोद शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 15 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शब्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

युद्ध अनिवार्य है
उसके लिए भी जो अकेला है
(वैसे कोई अकेला होता नहीं)
और उसके लिए भी जो अकेला नहीं है

जन्म लेते ही बच्चा रोता नहीं
उस युद्ध की घोषणा करता है
जो उसे लड़नापड़ता है आजीवन,

वह जो अकेला है
उसे लड़नापड़ता है अकेलेपन से
अब यह उसकी क्षमता है या नियति
किवह बुद्ध बनता है या तुलसीदास?
या फिर करनी पड़ती है उसे आत्महत्या
और वह जो अकेला नहीं है
उसे लड़ना पड़ता है उन असुरों और कौरवों से
जिनसे वह घिरा हुआ है
अब यह उसकी क्षमता है या नियति
कि वह राम बनता है या श्याम?
या फिर मारा जाता है शत्रुओं के हाथों

बहरहाल परिणाम चाहे कुछ भी हो
जीवन में युद्ध अनिवार्य है।