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"ये क्या जाने में जाना है / सीमाब अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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ये क्या जाने में जाना है, जाते हो ख़फ़ा होकर| | ये क्या जाने में जाना है, जाते हो ख़फ़ा होकर| |
23:49, 13 मई 2009 के समय का अवतरण
ये क्या जाने में जाना है, जाते हो ख़फ़ा होकर|
मैं तब जानू मेरे दिल से चले जाओ जुदा होकर|
क़यामत तक उड़ेगी दिल से उठकर ख़ाक आँखों तक,
इसी रास्ते गया है हसरतों का काफ़िला होकर|
तुम्हीं अब दर्द-ए-दिल के नाम से घबराये जाते हो,
तुम्हीं तो दिल में शायद आए थे दर्द-ए-आशियाँ होकर|
यूँ ही हमदम घड़ी भर को मिला करते तो बहतर था,
के दोनो वक़्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा होकर|