"ये तबियत है तो ख़ुद आज़ार बन जायेंगे हम / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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− | + | सख़्त जान हैं पर हमारी उस्तवारी पर न जा | |
− | + | ऐसे टूटेंगे तेरा इक़रार बन जायेंगे हम | |
− | + | और कुछ दिन बैठने दो कू-ए-जानाँ में हमें | |
− | + | रफ़्ता रफ़्ता साया-ए-दीवार बन जायेंगे हम | |
− | + | इस क़दर आसाँ न होगी हर किसी से दोस्ती | |
− | + | आश्नाई में तेरा मयार बन जायेंगे हम | |
− | + | मीर-ओ-ग़ालिब क्या के बन पाये नहीं फ़ैज़-ओ-फ़िराक़ | |
− | + | ज़म ये था रूमी-ओ-अतार बन जायेंगे हम | |
− | + | देखने में शाख़-ए-गुल लगते हैं लेकिन देखना | |
− | + | दस्त-ए-गुलचीं के लिये तलवार बन जायेंगे हम | |
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− | + | गुल हुए पर सुबह के आसार बन जायेंगे हम | |
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02:34, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
ये तबियत है तो ख़ुद आज़ार बन जायेंगे हम
चारागर रोयेंगे और ग़मख़्वार बन जायेंगे हम
हम सर-ए-चाक-ए-वफ़ा हैं और तेरा दस्त-ए-हुनर
जो बना देगा हमें ऐ यार बन जायेंगे हम
क्या ख़बर थी ऐ निगार-ए-शेर तेरे इश्क़ में
दिलबरान-ए-शहर के दिलदार बन जायेंगे हम
सख़्त जान हैं पर हमारी उस्तवारी पर न जा
ऐसे टूटेंगे तेरा इक़रार बन जायेंगे हम
और कुछ दिन बैठने दो कू-ए-जानाँ में हमें
रफ़्ता रफ़्ता साया-ए-दीवार बन जायेंगे हम
इस क़दर आसाँ न होगी हर किसी से दोस्ती
आश्नाई में तेरा मयार बन जायेंगे हम
मीर-ओ-ग़ालिब क्या के बन पाये नहीं फ़ैज़-ओ-फ़िराक़
ज़म ये था रूमी-ओ-अतार बन जायेंगे हम
देखने में शाख़-ए-गुल लगते हैं लेकिन देखना
दस्त-ए-गुलचीं के लिये तलवार बन जायेंगे हम
हम चिराग़ों को तो तारीकी से लड़ना है "फ़राज़"
गुल हुए पर सुबह के आसार बन जायेंगे हम