भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
 
ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
 
 
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या
 
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या
  

22:36, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा भिकारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है गोटा किनारी क्या

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

उसी के चलने-फिरने, हंसने-रोने की हैं तस्वीरें
घटा क्या, चाँद क्या, संगीत क्या, बाद-ए-बहारी क्या

किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या

हमारा मीर जी से मुत्तफ़िक़ होना है नामुमकिन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का-भारी क्या