भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये लहरें घेर लेती हैं / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 12 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये लहरें घेर लेती हैं
ये लहरें ...

उभर कर अर्द्ध द्वितीया
टूट जाता है...

अंतरिक्ष में
ठहरा एक

दीर्घ रहेगा समतल - मौन

दू्र... उत्तर पूर्व तक

तीन
ब्रह्मांड
टूटे हुए मिले चले गये हैं

अगिन व्यथा भर सहसा
कौन भाव
बिखर गया इन सब पर?