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"ये शाम है ग़म की शाम सही / कांतिमोहन 'सोज़'" के अवतरणों में अंतर
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हाँ, अपनी अगन जगाए रख | हाँ, अपनी अगन जगाए रख | ||
मंज़िल की लगन लगाए रख | मंज़िल की लगन लगाए रख |
01:10, 29 मार्च 2015 का अवतरण
यह गीत प्रिया और अनिल जनविजय के लिए
ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।
माना चहुँ ओर अन्धेरा है
नभ में मेघों का डेरा है
हाँ, कोसों दूर सवेरा है
पर धूप निकल ही आएगी ।
ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।
चलने से तू माज़ूर सही
हाँ, जिस्म थकन से चूर सही
मंज़िल भी सदियों दूर सही
पर राह निकल ही आएगी ।
ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।
आँखों में सपन सजाए रख
हाँ, अपनी अगन जगाए रख
मंज़िल की लगन लगाए रख
मंज़िल है तो मिल ही जाएगी ।
ये शाम है ग़म की शाम सही
ये शाम भी ढल ही जाएगी ।I