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"ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से / मोमिन" के अवतरणों में अंतर

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*खू = आदत
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'''शब्दार्थ:
*नाज़-ए-बुताँ = हसीनों के नख़रे
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लब-ए-मोजज़: बीमार का हाल जानना, आग़ाज़-ए-बद: बुरा, खू: आदत, बेनियाज़ी: लापरवाही, नाज़-ए-बुताँ: हसीनों के नख़रे
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14:24, 22 जनवरी 2009 का अवतरण

[category: ग़ज़ल]

ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से
कहूँ कुछ और कुछ निकले ज़ुबाँ से

बुरा है इश्क़ का अंजाम यारब
बचना फ़ितना-ए-आखिर ज़माँ से

मेरा बचना बुरा है आप ने क्यों
अयादत की लब-ए-मोजज़ बयाँ से

वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
तुझे ए ज़िन्दगी लाऊँ कहाँ से

न बोलूँगा न बोलूँगा कि मैं हूँ
ज़्यादा बद गुमाँ उस बदगुमाँ से

न बिजली जलवा फ़रमा है न सय्याद
निकल कर क्या करें हम आशयाँ से

बुरा अंजाम है आग़ाज़-ए-बद का
जफ़ा की हो गई खू इमतिहाँ से

खुदा की बेनियाज़ी हाय 'मोमिन
हम ईमाँ लाए थे नाज़-ए-बुताँ से

शब्दार्थ:
लब-ए-मोजज़: बीमार का हाल जानना, आग़ाज़-ए-बद: बुरा, खू: आदत, बेनियाज़ी: लापरवाही, नाज़-ए-बुताँ: हसीनों के नख़रे