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"यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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हाथ भर दूर ही रहता है किनारा हरदम
 
हाथ भर दूर ही रहता है किनारा हरदम
हमको यह डाँड चलाते ही हुई उम्र तमाम  
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फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चलें
 
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सुबह हुई थी जहाँ अब वहीं हो प्यार की शाम
 
सुबह हुई थी जहाँ अब वहीं हो प्यार की शाम
  
कोई मंज़िल है मिली गुमराही में भी हमको  
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यों तो दुनिया कि निगाहों में हम रहे नाकाम
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यों तो दुनिया कि निगाहों में हम रहे नाक़ाम
  
इस तरह गोद में काँटों के सो रहे हैं गुलाब
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इस तरह गोद में काँटों की सो रहे हैं गुलाब
 
जैसे आया हो तड़पने से दो घड़ी आराम  
 
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03:29, 7 जुलाई 2011 का अवतरण


यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम
जैसे मिल जाय भटकते हुए राही को मुकाम

हाथ भर दूर ही रहता है किनारा हरदम
हमको यह डाँड़ चलाते ही हुई उम्र तमाम

फिर एक बार कहो दिल से वहीं लौट चलें
सुबह हुई थी जहाँ अब वहीं हो प्यार की शाम

कोई मंज़िल है मिली गुमरही में भी हमको
यों तो दुनिया कि निगाहों में हम रहे नाक़ाम

इस तरह गोद में काँटों की सो रहे हैं गुलाब
जैसे आया हो तड़पने से दो घड़ी आराम