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"यों तो सभी से मेल-मुहब्बत है राह में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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मंज़िल कोई ऐसी भी एक आयी थी राह में | मंज़िल कोई ऐसी भी एक आयी थी राह में | ||
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ख़ुशबू तो लुट चुकी है किसी ऐशगाह में | ख़ुशबू तो लुट चुकी है किसी ऐशगाह में | ||
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03:32, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
यों तो सभी से मेल-मुहब्बत है राह में
हरदम रहा है पर तेरा दर ही निगाह में
क्या-क्या न लेके आये ग़ज़ल में सवाल हम!
सबका जवाब उसने दिया एक 'वाह' में
तुझसे बड़ी भी चीज़ है कुछ तुझमें, ज़िन्दगी!
तड़पा किये हैं हम जिसे पाने की चाह में
आते न छोड़कर कभी हम जिसको उम्र भर
मंज़िल कोई ऐसी भी एक आयी थी राह में
क्या क़द्र तेरी ज़र्द पँखुरियों की हो, गुलाब!
ख़ुशबू तो लुट चुकी है किसी ऐशगाह में