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रजबा जे चललै कचहरिया, त रनियाँ दुपट्टा धैलै हो / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में पति-पत्नी के बीच चलने वाले हास-परिहास का अच्छा वर्णन है। अनुकूल अवसर पर दोनों एक-दूसरे को रोकते हैं और दोनों समयाभाव का बहाना करते हैं, लेकिन क्या यह बहाना सही होता है? प्रेम की भाषा में ‘ना’ का अर्थ ही ‘हाँ’ होता है। पत्नी के गर्भवती होने पर पति व्यंग्य करते हुए जब यह कहता है कि तुम पहले तो सोना थी, फिर रूपा हो गई, अब तो पिटते-पिटते वह रूपा भी काँसा बन गया है, तो पत्नी भी बाज नहीं आती। वह भी लगे हाथ उत्तर दे देती है-‘राजा, तुम भी पहले रेशम-सदृश थे, फिर तागा बन गये। अब तो तुम सूत बन गये हो, छूते ही जिसके टूट जाने का भय है।

रजबा जे चललै कचहरिया, त रनियाँ दुपट्टा धैले<ref>पकड़ना</ref> हो।
ललना रे, आजु बारि पहिला नहान<ref>प्रथम स्नान;ऋतुमती होने के बाद का प्रथम स्नान</ref>, पयेंठ<ref>पैतान; पाँवता</ref> जनि सोबहु हो॥1॥
छोड़ि देहो हमरो दुपटवा न, हमरो चदरिया न हो।
ललना रे, भेलै कचहरिया के बेर, बिलम<ref>विलंब</ref> जनि करहु हो॥2॥
करि लेल सोलहो सिंगार, बतीसी अभरनमा न हो।
ललना रे, कनखी<ref>तिरछी निगाह से देखना</ref> सेॅ रजबा बोलाबै, चलहु धनि धरोहर<ref>धैरहर; मीनार</ref> हो॥3॥
छोड़ी देहो हमरो अँचरबा न, हमरो पहुँचबा न हो।
ललना रे, भैले दँतमनिया के बेर, बिलम जनि करहु हो॥4॥
पहिले जे रहो धनि सोनमा, से अब भेल रुपबा न हो।
ललना रे, पीटतेॅ पीटतेॅ भेल कँसबा, कि चित सेॅ उतरि गेल हो॥5॥
पहिले जे रहऽ राजा रेसम से, अब भेल तगबा न हो।
ललना रे, दुहतेॅ दुहतेॅ भेल सुतबा, छुअते टूटी जायब हो॥6॥

शब्दार्थ
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