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राख-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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यह कोमल-कोमल
ठंडी-ठंडी राख भी
कभी आग थी
वक्त रहते
समझ जाओ !

राख से
आग होना
कठिन है
परन्तु
राख में
आग का होना
आसान है ।

इस लिए समझो
आख को
हवा देना छोडो़ !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"