भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राज अपने तुमको बताती गयी / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण ()

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राज अपने तुमको बताती गयी

नजदीक दिल के यूँ आती गयी ।


हर दम रहता तेरा ही ख्याल

यूँ ख्वाब तेरे सजाती गयी ।


बंदिश तो न थी तेरे प्यार में

बन्धन में कैसे समाती गयी ?


मंजिल को पाने की ही चाह में

कदमों को अपने बढ़ाती गयी ।


तुम जो मिले ज़िदंगी में प्रिये

दुनिया मैं अपनी बसाती गयी ।