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"रातरानी कहो या कहो चाँदनी / राजकुमारी रश्मि" के अवतरणों में अंतर

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रातरानी कहो या कहो चाँदनी
 
रातरानी कहो या कहो चाँदनी
शीश से पाँव तक गीत ही गीत हूँ.
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शीश से पाँव तक गीत ही गीत हूँ
बांसुरी की तरह ही पुकारो मुझे  
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बाँसुरी की तरह तुम पुकारो मुझे  
एक पागल ह्रदय की विकल प्रीत हूँ.
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एक पागल ह्रदय की विकल प्रीत हूँ
 
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वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे
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मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ.
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युगों युगों से बसी है किसी नेह सी
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मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ.
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तुम किसी तौर पर ही निभा लो मुझे  
 
तुम किसी तौर पर ही निभा लो मुझे  
तो लगेगा तुम्हें जीत ही जीत हूँ.
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तो लगेगा तुम्हें जीत ही जीत हूँ
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जो सुवासित करे रोम से प्राण तक
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पर्वतों में पली चन्दनी गन्ध हूँ ।
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जिसकी अनुगूँज है आज हर कण्ठ में
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गीत-गोविन्द का मैं वही छन्द हूँ ।
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नेह के भाव में राग-अनुराग में
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सात सुर में बँधा एक संगीत हूँ ।
  
 
एक आकुल प्रतीक्षा किसी फूल की  
 
एक आकुल प्रतीक्षा किसी फूल की  
हाथ पकड़े पवन को बुलाती रही
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हाथ पकड़े पवन को बुलाती रह ।
शाख सूरज किरन चम्पई रंग से  
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शोख सूरज किरन चम्पई रंग से  
एड़ियों पर महावर लगाती रही  
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एड़ियों पर महावर लगाती रही
  
 
प्राण जिसको सहेजे हुए आजतक  
 
प्राण जिसको सहेजे हुए आजतक  
लोक व्यवहार की अनकही रीत हूँ.
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लोक व्यवहार की अनकही रीत हूँ
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वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे
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मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ ।
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युग-युगों से बसी है किसी नेह सी
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मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ ।
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खो दिया था जिसे तुमने मझधार में
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तुमसे बिछुड़ी हुई मैं वही मीत हूँ ।

02:08, 29 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

रातरानी कहो या कहो चाँदनी
शीश से पाँव तक गीत ही गीत हूँ ।
बाँसुरी की तरह तुम पुकारो मुझे
एक पागल ह्रदय की विकल प्रीत हूँ ।

तुम किसी तौर पर ही निभा लो मुझे
तो लगेगा तुम्हें जीत ही जीत हूँ ।

जो सुवासित करे रोम से प्राण तक
पर्वतों में पली चन्दनी गन्ध हूँ ।
जिसकी अनुगूँज है आज हर कण्ठ में
गीत-गोविन्द का मैं वही छन्द हूँ ।

नेह के भाव में राग-अनुराग में
सात सुर में बँधा एक संगीत हूँ ।

एक आकुल प्रतीक्षा किसी फूल की
हाथ पकड़े पवन को बुलाती रह ।
शोख सूरज किरन चम्पई रंग से
एड़ियों पर महावर लगाती रही ।

प्राण जिसको सहेजे हुए आजतक
लोक व्यवहार की अनकही रीत हूँ ।

वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे
मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ ।
युग-युगों से बसी है किसी नेह सी
मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ ।

खो दिया था जिसे तुमने मझधार में
तुमसे बिछुड़ी हुई मैं वही मीत हूँ ।