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रातें विमुख दिवस बेगाने / ओम प्रभाकर

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रातें विमुख दिवस बेगाने
समय हमारा,
हमें न माने !

लिखें अगर बारिश में पानी
पढ़ें बाढ़ की करूण कहानी
पहले जैसे नहीं रहे अब
ऋतुओं के रंग-
रूप सुहाने ।

दिन में सूरज, रात चन्‍द्रमा
दिख जाता है, याद आने पर
हम गुलाब की चर्चा करते हैं
गुलाब के झर जाने पर ।

हमने, युग ने या चीज़ों ने
बदल दिए हैं
ठौर-ठिकाने ।