भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात यदि श्याम नहीं आये थे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
गूँज रहा अब भी वंशी-स्वर | गूँज रहा अब भी वंशी-स्वर | ||
मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर | मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर | ||
− | किसने | + | किसने फिर वे रास मनोहर |
वन में रचवाये थे! | वन में रचवाये थे! | ||
00:56, 20 जुलाई 2011 का अवतरण
रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!
गूँज रहा अब भी वंशी-स्वर
मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर
किसने फिर वे रास मनोहर
वन में रचवाये थे!
शंका क्यों रहने दें मन में!
चलकर सखि! देखें मधुवन में
पथ के काँटों ने क्षण-क्षण में
आँचल उलझाये थे
मुझे याद है हरि ने छिपकर
मुग्ध दृष्टि डाली थी मुझपर
क्यों अंगों में सिहर रही भर
भेंट न यदि पाये थे!
रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!