भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राहत दो या उलझन दो / कृष्ण कुमार ‘नाज़’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:52, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण कुमार ‘नाज़’ }} {{KKCatGhazal}} <poem> राहत दो या उलझन दो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राहत दो या उलझन दो
ज़ह्न को कुछ तो ईंधन दो
 
घोर अँधेरा, तेज़ हवा
एक दिये के दुश्मन दो
 
आपस की नासमझी है
एक ही घर में आँगन दो
 
कितनी ख़ुश है नई दुल्हन
अबके बरस में सावन दो
 
आपस में खटकेंगे भी
गर हों घर में बर्तन दो
 
गिनलूँ मैं अपने भी दाग़
लाओ मुझको दरपन दो